.मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय
नाम: धनपत राय श्रीवास्तव (कलम नाम – मुंशी प्रेमचंद)
जन्म: 31 जुलाई 1880, बनारस (वाराणसी) के पास लमही गाँव, उत्तर प्रदेश
मृत्यु: 8 अक्टूबर 1936, बनारस
परिचय
मुंशी प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू साहित्य के महान उपन्यासकार, कहानीकार और नाटककार थे। उन्हें “उपन्यास सम्राट” कहा जाता है। उनकी रचनाओं में भारतीय ग्रामीण जीवन, सामाजिक समस्याएँ, अन्याय, गरीबी, और नैतिक मूल्यों का यथार्थ चित्रण मिलता है।
प्रारंभिक जीवन
-
प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय था।
-
बचपन में ही माता-पिता का निधन हो गया, जिससे जीवन में कठिनाइयाँ आईं।
-
शिक्षा बनारस में हुई। अंग्रेज़ी, उर्दू और फ़ारसी पर अच्छी पकड़ थी।
-
प्रारंभ में उर्दू में “नवाब राय” नाम से लिखना शुरू किया।
साहित्यिक जीवन
-
पहली कहानी "दुनिया का सबसे अनमोल रतन" 1907 में प्रकाशित हुई।
-
प्रारंभिक लेखन उर्दू में, बाद में हिंदी में लेखन आरंभ किया।
-
उनके लेखन का मुख्य विषय गरीब, किसान, दलित, स्त्री-शोषण, और समाज सुधार रहा।
-
वे सरल, सहज, और यथार्थवादी भाषा के लिए प्रसिद्ध थे।
मुख्य रचनाएँ
उपन्यास
-
गोदान
-
गबन
-
कर्मभूमि
-
रंगभूमि
-
सेवा सदन
कहानियाँ
-
पूस की रात
-
पंच परमेश्वर
-
कफ़न
-
नमक का दरोगा
-
ईदगाह
विशेषताएँ
-
यथार्थवादी और सामाजिक दृष्टिकोण।
-
भाषा में सरलता और संवादों में प्रभावशीलता।
-
साहित्य के माध्यम से समाज सुधार का संदेश।
मृत्यु
मुंशी प्रेमचंद का निधन 8 अक्टूबर 1936 को लंबी बीमारी के बाद हुआ, लेकिन वे आज भी अपने लेखन के माध्यम से जीवित हैं।
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी (तत्कालीन बनारस) के पास लमही नामक गाँव में हुआ। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था और वे “मुंशी प्रेमचंद” नाम से प्रसिद्ध हुए। बचपन में ही माता-पिता का निधन हो जाने के कारण उनका जीवन संघर्षपूर्ण रहा। उन्होंने बनारस में शिक्षा प्राप्त की और प्रारंभ में उर्दू में “नवाब राय” नाम से लिखना शुरू किया।
प्रेमचंद हिंदी और उर्दू साहित्य के उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने अपने लेखन में समाज की सच्चाई, गरीबों की पीड़ा, किसानों की दशा, स्त्रियों के अधिकार, और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई। उनकी भाषा सरल, सहज और प्रभावशाली थी, जिसमें गाँवों का जीवन और आम आदमी की भावनाएँ झलकती थीं।
उनके प्रमुख उपन्यासों में गोदान, गबन, रंगभूमि, कर्मभूमि, और सेवासदन प्रमुख हैं। वहीं पूस की रात, ईदगाह, कफ़न, पंच परमेश्वर और नमक का दरोगा जैसी कहानियाँ आज भी पाठकों के दिल को छूती हैं।
8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया, लेकिन वे अपनी रचनाओं के माध्यम से हमेशा जीवित रहेंगे। मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य को नई दिशा दी और उसे यथार्थवाद की ऊँचाई पर पहुँचाया।
***WRITE YOUR NAME, CLASS AND SCHOOL NAME AS : [ ABHA SHARMA 6A KVNO1 INDORE S-1 IN NAME FIELD ***
No comments:
Post a Comment