Sunday, 14 December 2025

केंद्रीय विद्यालय संगठन स्थापना दिवस











केंद्रीय विद्यालय संगठन स्थापना दिवस (15 दिसंबर)

केंद्रीय विद्यालय संगठन (KVS) क्या है?

केंद्रीय विद्यालय संगठन भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत चलने वाली एक स्वायत्त संस्था है, जो देश-भर में केंद्रीय विद्यालय (KV) स्कूलों का संचालन करती है।
इन विद्यालयों की स्थापना मुख्यतः केंद्र सरकार के कर्मचारियों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण और निरंतर शिक्षा देने के उद्देश्य से की गई थी, ताकि ट्रांसफर होने पर बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो।
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स्थापना दिवस कब मनाया जाता है?

केंद्रीय विद्यालय संगठन का स्थापना दिवस हर साल 15 दिसंबर को मनाया जाता है।

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KVS की स्थापना कब और क्यों हुई?

✔ स्थापना वर्ष: 1963

✔ स्थापित करने वाले: भारत सरकार, शिक्षा मंत्रालय

✔ मुख्य उद्देश्य:

1. केंद्र सरकार के कर्मचारियों के बच्चों को समान और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा उपलब्ध कराना।
(विशेषकर सेना, अर्धसैनिक बल, रेलवे, रक्षा क्षेत्रों आदि में कार्यरत कर्मचारियों के लिए)


2. विभिन्न राज्यों में बार-बार स्थानांतरण के बावजूद बच्चों की पढ़ाई में निरंतरता बनाए रखना।


3. राष्ट्रीय स्तर पर समान पाठ्यक्रम और समान शिक्षा प्रणाली प्रदान करना।


4. देश में शिक्षा के स्तर को एकरूप और आधुनिक बनाना।


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KVS की विशेषताएँ

⭐ 1. समान पाठ्यक्रम

देश के सभी केंद्रीय विद्यालयों में CBSE आधारित एक ही पाठ्यक्रम चलता है।

⭐ 2. उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा

अनुभवी शिक्षकों और उत्कृष्ट शिक्षण विधियों के कारण KV देश के बेहतरीन स्कूलों में गिने जाते हैं।

⭐ 3. बच्चों के समग्र विकास पर जोर

खेल, योग, संगीत, कला, स्काउट-गाइड, कंप्यूटर शिक्षा आदि पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

⭐ 4. ट्रांसफर होने पर आसान प्रवेश

एक KV से दूसरे KV में छात्र का प्रवेश बहुत सरल प्रक्रिया के तहत होता है।

⭐ 5. सस्ती और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा

कम फीस में उच्च स्तरीय शिक्षा उपलब्ध कराई जाती है।

⭐ 6. देशभक्ति और राष्ट्रीय एकता की भावना

सभी KV में "जय हिंद" का प्रयोग, प्रार्थना, संस्कार, अनुशासन और गतिविधियों के माध्यम से राष्ट्रीय एकता पर जोर।

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स्थापना दिवस क्यों मनाया जाता है?

✔ संस्था की उपलब्धियों और विकास को याद करने हेतु

✔ छात्रों में KV की परंपराओं व मूल्यों के प्रति गर्व भाव उत्पन्न करने हेतु

✔ शिक्षा के क्षेत्र में KVS के योगदान का सम्मान करने हेतु

✔ विद्यार्थियों में अनुशासन, एकता और सेवाभाव को बढ़ावा देने हेतु
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स्थापना दिवस पर क्या-क्या कार्यक्रम होते हैं?

विशेष प्रार्थना सभा

भाषण, कविता, निबंध

सांस्कृतिक कार्यक्रम

स्काउट-गाइड गतिविधियाँ

चित्रकला और पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता

शपथ ग्रहण (समानता, अनुशासन और सेवा की भावना)

विद्यालय की उपलब्धियों का प्रस्तुतीकरण

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केंद्रीय विद्यालय संगठन का महत्व

⭐ राष्ट्रीय एकता को मजबूत करना

देश के किसी भी राज्य में KV में पढ़कर बच्चे एकता को समझते और अपनाते हैं।

⭐ बहु-भाषिक और सांस्कृतिक विविधता का सम्मान

एक ही कक्षा में अलग-अलग राज्यों और समुदायों के बच्चे साथ पढ़ते हैं।

⭐ भविष्य के नागरिकों का निर्माण

कला, खेल, शिक्षा और संस्कार का संतुलित वातावरण।

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Tuesday, 9 December 2025

मानव अधिकार दिवस




मानव अधिकार दिवस क्या है?
मानव अधिकार दिवस हर साल 10 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1948 में बनाए गए मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा पत्र (Universal Declaration of Human Rights – UDHR) को अपनाने की याद में मनाया जाता है। इस घोषणा पत्र में हर व्यक्ति को मिलने वाले मूलभूत अधिकारों का वर्णन किया गया है।
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मानव अधिकार दिवस क्यों मनाया जाता है?

मानव अधिकार दिवस मनाने के मुख्य उद्देश्य हैं:

1. हर व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना

हर व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म, जाति, भाषा, रंग, लिंग, देश या स्थिति का हो—उसे समान अधिकार मिलें।

2. मानवता, समानता और न्याय का संदेश देना

समाज में न्याय और बराबरी की भावना को मजबूत करना।

3. भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाना

लिंग भेदभाव, नस्लवाद, उत्पीड़न, हिंसा और शोषण को रोकना।

4. सरकारों और संस्थाओं को जिम्मेदारी का एहसास कराना

ताकि वे लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए उचित कानून लागू करें।

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मानव अधिकार दिवस मनाने के कारण

दुनिया में कहीं भी मानव अधिकारों का उल्लंघन न हो।

गरीब, कमजोर, बच्चों और महिलाओं को न्याय मिले।

मानव तस्करी, बाल मजदूरी और हिंसा जैसे अपराधों को रोका जा सके।

लोगों को स्वतंत्रता, सम्मान और सुरक्षा मिले।

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मानव अधिकार दिवस से क्या जागरूकता फैलती है?

✔ मानव अधिकार क्या हैं, यह समझ बढ़ती है

लोग अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझते हैं।

✔ सभी के प्रति सम्मान और सहानुभूति बढ़ती है

समाज में भाईचारा और समानता बढ़ती है।

✔ अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत मिलती है

लोग किसी भी तरह के शोषण के खिलाफ बोलने का साहस पाते हैं।

✔ महिलाओं, बच्चों और कमजोर वर्गों की सुरक्षा पर जोर

उनके हितों की रक्षा के लिए अभियान चलाए जाते हैं।

✔ कानून और मानव अधिकार आयोग की भूमिका समझना

लोग जान पाते हैं कि उनके अधिकारों की रक्षा किन संस्थाओं द्वारा की जाती है।








Friday, 5 December 2025

भाषा संगम


भारत एक विशाल और विविधताओं से भरा देश है। यहाँ हर कुछ किलोमीटर पर भाषा, बोली, वेशभूषा, खान-पान और परंपराएँ बदल जाती हैं। यही वजह है कि भारत को “भाषाओं का गुलदस्ता” कहा जाता है। हमारे संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएँ सम्मिलित हैं, जिनमें से प्रत्येक भाषा अपने आप में एक संस्कृति, इतिहास और परंपरा का प्रतिनिधित्व करती है।

इसी अद्भुत भाषाई विविधता को सम्मान देने और इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने के उद्देश्य से भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय और केंद्रीय विद्यालय संगठन (KVS) ने एक उत्कृष्ट पहल शुरू की है, जिसका नाम है “भाषा संगम”। यह कार्यक्रम एक भारत श्रेष्ठ भारत के अंतर्गत चलाया जाता है।
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भाषा संगम की अवधारणा

भाषा संगम का अर्थ है—भाषाओं का मिलन।
यह कार्यक्रम बच्चों को विभिन्न भारतीय भाषाओं से परिचित कराने के लिए बनाया गया है। इसके अंतर्गत विद्यार्थियों को प्रतिदिन किसी एक भारतीय भाषा के कुछ सरल वाक्य सिखाए जाते हैं, जिनमें अभिवादन, परिचय, धन्यवाद, क्षमा और दैनिक इस्तेमाल के छोटे-छोटे वाक्य शामिल होते हैं।

इसका उद्देश्य भाषा को पढ़ाना नहीं बल्कि विद्यार्थियों में जिज्ञासा, सम्मान और समझ उत्पन्न करना है, ताकि वे भारत की भाषाई समृद्धि को महसूस कर सकें।
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भाषा संगम के उद्देश्य

1. भारत की भाषाई विविधता का परिचय देना

विद्यार्थियों को यह बताना कि भारत की हर भाषा मूल्यवान है और हर भाषा का सम्मान होना चाहिए।

2. राष्ट्रीय एकता को मजबूत करना

भिन्न भाषाओं को समझने से बच्चों में आपसी प्रेम और भाईचारा बढ़ता है।

3. विद्यार्थियों में भाषाई कौशल का विकास

नई भाषाओं के शब्द जानकर बच्चे भाषाई रूप से अधिक समृद्ध बनते हैं।

4. संस्कृतियों का आदान-प्रदान बढ़ाना

भाषा किसी संस्कृति की आत्मा होती है। नई भाषाएँ सीखकर बच्चे विविध संस्कृतियों को भी जान पाते हैं।

5. आत्मविश्वास और अभिव्यक्ति कौशल बढ़ाना

नई भाषाओं में संवाद के छोटे-छोटे प्रयास बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं।


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विद्यालयों में भाषा संगम कैसे मनाया जाता है?

भाषा संगम के दौरान विद्यालयों में विभिन्न गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं, जैसे—

✔ • प्रतिदिन एक नई भाषा के वाक्य सीखना

जैसे तमिल, तेलुगु, मराठी, बंगाली, कन्नड़ आदि भाषाओं में अभिवादन।

✔ • भाषा संगम दीवार/बोर्ड

जहाँ सभी भाषाओं के वाक्य पोस्टर के रूप में प्रदर्शित किए जाते हैं।

✔ • समूह गतिविधियाँ

बच्चों द्वारा अलग-अलग भाषाओं में बोलना, संवाद करना, कविता पढ़ना।

✔ • सांस्कृतिक कार्यक्रम

किसी भाषा से जुड़े लोकगीत, नृत्य या परंपरा का प्रदर्शन।

✔ • भाषाई क्विज़ और प्रतियोगिताएँ

जिससे बच्चों में उत्साह बढ़ता है।

✔ • सुबह की सभा में दैनिक भाषा परिचय

जहाँ छात्र मंच पर उस दिन की भाषा के वाक्य बोलते हैं।


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भाषा संगम का महत्व

1. भाषाई सद्भाव बढ़ाता है

यह कार्यक्रम बच्चों को सिखाता है कि किसी भी भाषा को बड़ा या छोटा नहीं समझना चाहिए।

2. एकता में विविधता का अनुभव

जब बच्चे विभिन्न भाषाएँ सुनते और सीखते हैं, तो वे समझते हैं कि विविधता ही भारत की ताकत है।

3. आत्मविश्वास और प्रस्तुतीकरण क्षमता में वृद्धि

मंच पर बोलने का अवसर मिलने से छात्रों में आत्मविश्वास बढ़ता है।

4. संचार कौशल में सुधार

विभिन्न भाषाओं के शब्द जानने से उनका भाषा ज्ञान और शब्द भंडार बढ़ता है।

5. सामाजिक और सांस्कृतिक जागरूकता

बच्चे भाषाओं के माध्यम से विभिन्न राज्यों और समुदायों की संस्कृति से परिचित होते हैं।

6. सकारात्मक और समावेशी वातावरण

स्कूल में आपसी सम्मान, सहयोग और दोस्ती का माहौल मजबूत होता है।

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भाषा संगम से बच्चों पर पड़ने वाला प्रभाव:

बच्चे नई चीजें सीखने में अधिक रुचि लेते हैं।

उनके मन में जिज्ञासा और सीखने की भावना बढ़ती है।

बच्चों की रचनात्मकता, विचार शक्ति और संवेदनशीलता विकसित होती है।

वे भारत के अन्य राज्यों, संस्कृतियों और परंपराओं के प्रति सम्मान का भाव अपनाते हैं।

नई भाषाओं को सीखकर वे अधिक आत्मविश्वासी बनते हैं और संवाद कौशल में सुधार आता है।

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⭐ निष्कर्ष

अंत में कहा जा सकता है कि भाषा संगम कार्यक्रम भारत की भाषाई विरासत का उत्सव है, जो बच्चों में विभिन्न भाषाओं के प्रति प्रेम, सम्मान और समझ उत्पन्न करता है। यह कार्यक्रम केवल भाषा …







Monday, 1 December 2025

WORLD AIDS DAY


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🌍वर्ल्ड एड्स डे (World AIDS Day)
हर साल 1 दिसम्बर को मनाया जाता है। यह दिन एचआईवी/एड्स के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने, संक्रमित लोगों के साथ सहानुभूति दिखाने और इस बीमारी से लड़ने के वैश्विक प्रयासों को मजबूत करने के लिए मनाया जाता है।

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वर्ल्ड एड्स डे क्यों मनाया जाता है?

लोगों में एचआईवी/एड्स के प्रति सही जानकारी पहुँचाने के लिए।

बीमारी से जुड़े भ्रम और डर को दूर करने के लिए।

संक्रमित लोगों के प्रति भेदभाव मिटाने के लिए।

उन लोगों को याद करने के लिए जो इस बीमारी के कारण दुनिया से जा चुके हैं।

बीमारी की रोकथाम और उपचार के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए।

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एचआईवी और एड्स क्या है?

HIV (Human Immunodeficiency Virus) एक वायरस है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करता है।

AIDS (Acquired Immunodeficiency Syndrome) HIV का आखिरी और गंभीर चरण है, जिसमें शरीर किसी भी संक्रमण से नहीं लड़ पाता।

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वर्ल्ड एड्स डे का प्रतीक

लाल रिबन (Red Ribbon) इसका प्रतीक है, जो एड्स पीड़ितों के समर्थन और जागरूकता को दर्शाता है।

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2025 का थीम (संभावित या प्रचलित थीम)

प्रत्येक वर्ष एक थीम होती है – जैसे:
“Let Communities Lead” (समुदायों को नेतृत्व करने दें) – यह हाल के वर्षों का प्रमुख संदेश रहा है।

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वर्ल्ड एड्स डे के अवसर पर स्कूलों में होने वाली गतिविधियाँ

जागरूकता रैली

पोस्टर मेकिंग

निबंध लेखन

रेड रिबन कैंपेन

क्विज़ प्रतियोगिता

डॉक्यूमेंट्री / जानकारी सत्र


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बच्चों को क्या सीख मिलती है?

बीमारी के बारे में सही और वैज्ञानिक जानकारी

सामाजिक भेदभाव से बचना

स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना

इंसानियत और सहानुभूति की भावना

सुरक्षित जीवनशैली के बारे में जागरूकता





Tuesday, 25 November 2025

भारतीय संविधान


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🏛️भारतीय संविधान 

भूमिका:

हर देश की एक व्यवस्था होती है जिसके अनुसार वह चलता है। उसी व्यवस्था को संविधान कहा जाता है। संविधान देश की आत्मा, रीढ़ और पहचान होता है। यह नागरिकों के अधिकारों, कर्तव्यों और शासन की सीमाओं को निर्धारित करता है। भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा और सबसे विस्तृत लिखित संविधान है। यह भारतीय लोकतंत्र की नींव है जो प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार प्रदान करता है।


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संविधान निर्माण की प्रक्रिया:

भारत के संविधान का निर्माण स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद किया गया। संविधान निर्माण का कार्य संविधान सभा द्वारा किया गया जिसकी स्थापना 9 दिसंबर 1946 को हुई थी।
संविधान सभा में देश के विभिन्न प्रांतों और राज्यों से चुने गए प्रतिनिधि शामिल थे।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे और डॉ. भीमराव अंबेडकर संविधान निर्माण समिति के अध्यक्ष थे।
संविधान बनाने में लगभग 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन का समय लगा।
आख़िरकार 26 नवम्बर 1949 को संविधान तैयार हुआ और 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया।
इसी दिन भारत गणराज्य बना, इसलिए हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।


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संविधान की विशेषताएँ:

भारतीय संविधान अनेक विशेषताओं से परिपूर्ण है —

1. लिखित संविधान: भारत का संविधान एक लिखित दस्तावेज़ है जिसमें लगभग 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ हैं।


2. संघीय शासन प्रणाली: इसमें केंद्र और राज्य दोनों को शक्ति प्रदान की गई है, जिससे देश में संतुलन बना रहता है।


3. संसदीय लोकतंत्र: भारत में सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है और जनता के प्रति उत्तरदायी होती है।


4. धर्मनिरपेक्षता: भारत में हर व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने या न मानने की स्वतंत्रता है।


5. मौलिक अधिकार: संविधान नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, जीवन, शिक्षा, और अभिव्यक्ति जैसे मौलिक अधिकार देता है।


6. मौलिक कर्तव्य: संविधान हमें अपने देश के प्रति जिम्मेदार बनाता है और कुछ कर्तव्यों का पालन करने का निर्देश देता है।


7. न्यायपालिका की स्वतंत्रता: न्यायपालिका स्वतंत्र है, ताकि हर नागरिक को न्याय मिल सके।


8. प्रस्तावना: संविधान की प्रस्तावना में “हम भारत के लोग...” शब्द भारतीय लोकतंत्र की आत्मा हैं। यह दर्शाता है कि देश की शक्ति जनता में निहित है।




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संविधान का महत्व:

भारतीय संविधान देश के शासन का मूल आधार है। यह न केवल सरकार को दिशा देता है बल्कि नागरिकों के अधिकारों की रक्षा भी करता है। संविधान ही देश को एकता और अखंडता के सूत्र में बाँधता है।
यह हमें सिखाता है कि हर नागरिक समान है और सबको न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का अधिकार है।
यदि संविधान न होता, तो देश में अराजकता, अन्याय और असमानता फैल जाती।


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उपसंहार:

भारतीय संविधान केवल कानूनों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह एक जीवन दर्शन है जो हमें सही दिशा में चलने की प्रेरणा देता है।
इसमें भारत की विविधता में एकता की झलक मिलती है।
हमें अपने संविधान का आदर करना चाहिए और इसके सिद्धांतों का पालन करना चाहिए, क्योंकि यही हमारे लोकतंत्र की असली ताकत है।


Sunday, 23 November 2025

गुरु तेग बहादुर जी


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🌺 गुरु तेग बहादुर जी

प्रस्तावना

भारत भूमि महान संतों, महापुरुषों और त्यागियों की भूमि रही है। यहां ऐसे अनेक वीर हुए जिन्होंने धर्म, सत्य और मानवता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। सिख धर्म के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर जी ऐसे ही महान महापुरुष थे, जिन्होंने न केवल सिखों बल्कि पूरे भारत के लोगों के धर्म और आस्था की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उन्हें “हिन्द की चादर” कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने हिन्दू धर्म और मानवता की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया।
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प्रारंभिक जीवन

गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल 1621 ईस्वी में अमृतसर (पंजाब) में हुआ था। उनके पिता गुरु हरगोबिंद सिंह जी सिखों के छठे गुरु थे, और माता नानकी जी एक धार्मिक और सहृदय महिला थीं। बचपन में गुरु तेग बहादुर जी का नाम त्यागमल रखा गया था, लेकिन उनकी वीरता और तेजस्विता के कारण उन्हें बाद में “तेग बहादुर” कहा जाने लगा — जिसका अर्थ है “तेग (तलवार) का बहादुर”।
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शिक्षा और आध्यात्मिक जीवन

गुरु तेग बहादुर जी को बचपन से ही धार्मिक और युद्धकला की शिक्षा मिली। उन्होंने गुरु नानक देव जी के उपदेशों को आत्मसात किया और जीवन में सादगी, त्याग और सेवा का मार्ग अपनाया। वे ध्यान, भक्ति और आत्मसंयम के प्रतीक थे। उन्होंने सिख धर्म की शिक्षाओं को जनता तक पहुँचाने के लिए कई स्थानों की यात्राएँ कीं।
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गुरु के रूप में योगदान

गुरु तेग बहादुर जी, गुरु हरकृष्ण जी के पश्चात सिखों के नौवें गुरु बने। उस समय भारत में मुगल बादशाह औरंगज़ेब का शासन था, जो जबरन धर्म परिवर्तन करवा रहा था। कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार किए जा रहे थे। तब पंडितों ने अपनी रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर जी से सहायता मांगी।

गुरु जी ने निर्भीक होकर कहा –

> “यदि मेरा बलिदान इस अत्याचार को रोक सकता है, तो मैं पीछे नहीं हटूंगा।”


यह कहकर उन्होंने धर्म और मानव अधिकारों की रक्षा के लिए स्वयं को दिल्ली के बादशाह के सामने प्रस्तुत किया।


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बलिदान और शहादत

गुरु तेग बहादुर जी को औरंगज़ेब के आदेश पर दिल्ली लाया गया। उनसे इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा गया, परंतु उन्होंने दृढ़तापूर्वक इंकार कर दिया। उन्होंने कहा –

> “धर्म की रक्षा के लिए मैं अपना सिर दे सकता हूँ, पर अपने सिद्धांत नहीं।”

इस पर उन्हें 24 नवंबर 1675 ईस्वी को दिल्ली के चांदनी चौक में सार्वजनिक रूप से शहीद कर दिया गया।
उनका शीश आनंदपुर साहिब लाया गया, और वहीं आज “गुरुद्वारा शीश गंज साहिब” उनकी स्मृति में बना हुआ है।

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गुरु तेग बहादुर जी की शिक्षाएँ

1. धर्म की स्वतंत्रता: हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है।


2. समानता: सभी मनुष्य समान हैं, जाति और धर्म के आधार पर किसी का भेदभाव नहीं होना चाहिए।


3. त्याग और सेवा: दूसरों के हित के लिए अपने स्वार्थों का त्याग करना ही सच्चा धर्म है।


4. सत्य और साहस: सत्य के मार्ग पर चलने के लिए साहस जरूरी है, चाहे उसके लिए प्राणों की आहुति ही क्यों न देनी पड़े।

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उपसंहार

गुरु तेग बहादुर जी का जीवन हमें साहस, त्याग, धर्मनिष्ठा और मानवता का संदेश देता है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि सच्चा धर्म वही है, जो सबके अधिकारों और सम्मान की रक्षा करे। उनका बलिदान केवल सिख धर्म के लिए नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष की आत्मा के लिए था।
उनकी स्मृति में आज भी हर भारतीय गर्व से कहता है —

> “धर्म की खातिर जिसने शीश दिया,
वो था तेग बहादुर — हिन्द की चादर!”